दक्षिण कोरिया : 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस का बैरियर पार करने वाला बना पहला देश
इस समय विश्व के सभी देश Artificial Sun बनाने की होड़ में लगे हुए है। इसी बिच हाल ही में पहली बार, दक्षिण कोरिया में शोधकर्ताओ ने परमाणु संलयन प्रतिक्रिया को 30 सेकंड के लिए 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर रख कर इतिहास रच दिया है। यह तापमान सूर्य के कोर से लगभग सात गुना अधिक गर्म है। सूर्य के कोर का तापमान लगभग 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस होता है।
यह संलयन शक्ति प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का हो सकता है ,यह स्वाभाविक रूप से सूर्य के अंदर होने वाली प्रक्रियाओं के अध्ययन किया गया है जो लगभग अंतहीन स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होने वाला है।
ये परीक्षण heat and stability के मामले में नवीनतम उपलब्धि है जो शोधकर्ताओं को एक व्यावहारिक संलयन रिएक्टर बनाने के एक कदम और करीब लाती है। चाहे भले ही अवधि और तापमान अभी आवस्यकता अनुशार न हो।
क्या है परमाणु संलयन
परमाणु संलयन बिजली पैदा करने की एक व्यवहार्य तकनीक है इस तकनीक में कम परमाणु भार वाले दो नाभिकों के विलय से भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।और सबसे अच्छी बात यह है की इससे कोई भी रेडियोधर्मी पदार्थ उत्पन नहीं होता है और इसलिए परमाणु विखंडन प्रौद्योगिकी के लिए आवश्यक रोकथाम उपायों की आवश्यकता नहीं होती है।इसी कारण इस तकनीक को अंतहीन स्वछ ऊर्जा का स्रोत कहा जा सकता है।
परमाणु संलयन बनाना क्यों है इतना मुश्किल
परमाणु संलयन में सबसे कठिन काम तत्व प्रतिक्रिया उत्पन्न नहीं है। वैज्ञानिकों ने विभिन्न तरीकों का आविष्कार कर लिया है जिससे वे इसे प्राओत कर सकते है। जिसमें लेजर के साथ पदार्थ को संपीड़ित करना और एक सर्कल में सुपरहीटेड गैस चलाना शामिल है। चुनौती इस रिएक्शन को लम्बे समय तक बनाए रखना है ताकि बिजली संयंत्र इस ऊर्जा का उपयोग कर सकें।यह वही प्रक्रिया है जिससे सूर्य हमे ऊर्जा प्रदान करता है। यह प्रक्रिया सूर्य के कोर में होता है जहा पर टेम्प्रेचर और प्रेसर बहुत ज्यादा रहता है। वही प्रेशर धरती पे उत्पन करना लगभग असंभव है।
क्या है टोकामाक ?
टोकामाक, एक डोनट के आकार का उपकरण जिसमें गर्म गैस की एक अंगूठी जैसी संरचना होती है, जिसे शक्तिशाली मैग्नेट द्वारा फंसे प्लाज्मा के रूप में जाना जाता है। शब्द “प्लाज्मा” उस सामग्री को कहते है जिसके इलेक्ट्रॉनों को अपने परमाणुओं से हटा दिया गया हो।
यदि यह रिएक्टर की दीवारों के संपर्क में आते हैं तो प्लाज्मा प्रतिक्रियाओं को बाधित कर सकती है और उपकरण को नुकसान पहुंचा सकता है।
सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी और कोरिया इंस्टीट्यूट ऑफ फ्यूजन एनर्जी की एक टीम ने कोरिया सुपरकंडक्टिंग टोकामक एडवांस्ड रिसर्च (केएसटीएआर) में रिएक्टर के साथ कई प्रयोग किए। टीम रिएक्टर के केंद्र में प्लाज्मा रख कर तापमान में वृद्धि से लेकर आकार में कमी तक कई तरह के बदलाव भी किये गए ,जिससे टोकामक तकनीक में कई सुधार हुए हैं। फिर भी इंजीनियरों को अभी भी एक लम्बे अवधि के लिए उच्च तापमान पर प्लाज्मा प्रसारित करने के लिए टोकामक प्राप्त करने में परेशानी हो रही है।
7 सितंबर को, यह शोध वैज्ञानिक पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुआ था। प्रकाशन इंगित करता है कि शोधकर्ताओं ने केवल 20 सेकंड के लिए ही 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस के तापमान का सामना किया।
हालांकि, 2021 में, चीन नेऐसी ही एक समान प्रयोग सुविधा 17 मिनट के लिए की तह थी जो थोड़ा कम तापमान पर किया गया था । प्लाज्मा 70 मिलियन डिग्री सेल्सियस पर जो सूर्य से पांच गुना अधिक गर्म था।
कोरिया इंस्टीट्यूट ऑफ फ्यूजन एनर्जी ने वर्ष की शुरुआत से 2022 के अंत तक 50 सेकंड के लिए 100 मिलियन डिग्री से अधिक के प्लाज्मा तापमान तक पहुंचने का लक्ष्य रखा, जिसका अंतिम उद्देश्य 2026 तक 300 सेकंड तक करने का है।
प्लाज्मा रखने के तरीके
परमाणु संलयन रिएक्टर के अंदर प्लाज्मा को समाहित रखने के लिए सर्वोत्तम तरीकों पर अभी भी शोध किया जा रहा है। ऐसी ही एक तकनीक है एज ट्रांसपोर्ट बैरियर (ETB) का निर्माण करने के लिए चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करना, जो रिएक्टर की दीवार के करीब दबाव में अचानक कट-ऑफ बनाकर गर्मी और प्लाज्मा को बाहर निकलने से रोका जाता है।
यह परमाणु संलयन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि प्रक्रिया से ऊर्जा निकालने के लिए उच्च तापमान की आवश्यकता होती है।