आजकल अधिकतर लोग हाई ब्लड प्रैशर की समस्या से पीडि़त हैं। लोग इस समस्या को हल्के में लेते हैं लेकिन यह समस्या इंसान के लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है। इसलिए हाई ब्लड प्रैशरकी समस्या से पीडि़त व्यक्ति को समय रहते इसका इलाज करवा लेना चाहिए। पहले हाई ब्लड प्रैशर को बढ़ती उम्र का मर्ज समझा जाता था, लेकिन अब बच्चों, युवाओं व गर्भवती महिलाओं में भी इस जानलेवा बीमारी के लक्षण दिखने लगे हैं।

गर्भावस्था में महिला का ब्लड प्रैशर बढऩा बेहद खतरनाक होता है। जिन महिलाओं का बी.पी. सामान्य रहता है तथा गर्भावस्था में 20 हफ्ते के बाद बढ़ता है उसे प्रीइक्लेंप्सिया कहा जाता है जिसकी समयानुसार जांच व उपचार होना अनिवार्य है। इसको शुरू में ही काबू करना आवश्यक है अन्यथा प्रीइक्लेंप्सिया के अंतिम चरण इक्लेंप्सिया का इलाज कठिन है। आरंभिक गर्भावस्था में नई रक्त कोशिकाएं विकसित होकर पलेसेटा तक प्रभावी ढंग से रक्त पहुंचाती हैं जबकि प्रीइक्लेंप्सिया से ग्रस्त महिलाओं में रक्त बहिकाएं विकसित नहीं होने पर कार्य नहीं करती है। इससे गर्भ में शिशु का विकास धीमा होता है तथा मिसकेरज भी हो सकता है।

बच्चे का समय से पूर्व जन्म, कम वजन से जन्मजात विकृतियां हो जाती हैं तथा किडनी, लंगस, आंख, हृदय को नुकसान हो सकता है। जिन महिलाओं में पहला गर्भ, मोटापा, शुगर, गुरदे की बीमारी, गर्भ दौरान धूम्रपान, गर्भ में एक से अधिक बच्चा, अनुवांशिक, 20 साल से कम या 40 साल से अधिक आयु में गर्भ ठहरना, आई.यू.एफ. से गर्भधारण के कारक होते है उन्हें प्रीइक्लेंप्सिया होने की आशंका ज्यादा होती है। इसलिए डिलवरी के बाद फलों,सब्जियों,व्यायाम पर उचित ध्यान दे।

प्रीइक्लेंप्सिया के लक्षण

1.सिर दर्द।
2.देखने में धुंधलापन ।
3.उल्टी आना।
4.तेजी से वजन बढऩा।
5.पेशाब में प्रोटीन होना।
6.बी.पी.140-90 या अधिक होना।
7.हाथ पैर,चेहरे में सूजन।
8.शरीर में ऐंठन होना।

प्रीइक्लेंप्सिया के टैस्ट

  1. रक्त परीक्षण
  2. मूत्र विश्लेषण
  3. भ्रूण अल्ट्रासाउंड।

प्रीइक्लेंप्सिया का इलाज

प्रसव के दौरान ब्लड प्रैशर को बढऩे से रोकने हेतु सिजेरियन डिलिवरी आवश्यक होती है। बी.पी., ऐंठन कम करने के लिए दवाइयां, एंटीकोनसूलेट प्रयोग की जाती है तथा वी.पी.कंट्रोल नहीं होने तक सीर्जम,प्लेसमेट के फटने,स्ट्रोक,गंभीर रक्तस्राव का खतरा बना रहता है। बच्चे के फेफड़ों को 48 घटों में परिपक्व बनाया जाता है जो बच्चे को समय से पहले गर्भ से बाहर लाने में सहायता करते हैं। गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती करके बच्चे-मां की देखभाल की जाती है। गर्भावस्था के अंतिम चरणों में प्रीइक्लेंप्सिया होने पर नौवां महीना पूरा होने का इंतजार करने की बजाय तुरत डिलिवरी की जाती है। प्रसव दौरान सीर्जस रोकने हेतु मैगनीशियम सलफेट नसों द्वारा देकर जच्चा-बच्चा की जान बचाई जाती है।

हाई ब्लड प्रैशर क्या है

ये एक ऐसी शारीरिक अवस्था है, जो हृदय रोग, डायबिटीज, किडनी से संबंधित बीमारियों की वजह बन सकती है। मानव शरीर में रक्तवाहिका नलियों का जाल फैला होता है तथा तेज बहाव की वजह से रक्तवाहिका नलिका पर दबाव बढऩे पर उनकी भीतरी दीवारें सिकुडऩे लगती हैं। इसी अवस्था को हाई ब्लड प्रैशर कहा जाता है।

कई बार हृदय की गति ज्यादा तेज होने की अवस्था में भी रक्तवाहिका नलियों को रक्त के तेज बहाव का दबाव झेलना पड़ता है। ऐसी स्थिति में बढऩे वाले ब्लड प्रैशर को हाइपरटैंशन कहा जाता है। सामान्य ब्लड प्रैशर का सिस्टोलिक लेवल (अधिकतम सीमा) 110-120,डायस्टोलिक लेवल (न्यूनतम सीमा) 70-80 होनी चाहिए।

यदि किसी व्यक्ति के ब्लड प्रैशर की अधिकतम सीमा 140 से अधिक, न्यूनतम सीमा 90 से अधिक हो तो इसे प्री हाइपरटैंशन की अवस्था कहते हैं। जिससे ब्रेन हैमरेज,पैरालाइसिस, हार्ट अटैक, किडनी खराबी, डायबिटीज समस्याएं हो सकती हैं।

प्रैगनैंसी दौरान एस्ट्रोजेन हॉर्मोन तेजी से होने तथा मेनोपॉज के बाद हार्मोन संबंधी असंतुलन की वजह से स्त्रियों में हाई ब्लड प्रैशर की आशंका बढ़ जाती है। हाई ब्लड प्रैशर घी-तेल, फास्ट/जंक फूड, सॉफ्ट ड्रिंक, अल्कोहल, सिगरेट के सेवन, शारीरिक गतिविधियां कम होने, नमक का अधिक सेवन करने पर होता है। इससेे चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, अनिद्रा, घबराहट, बेचैनी, थकान, सांस फूलना, नाक से खून आना, याददाश्त में कमी हो जाती है।

इससे बचने के लिए नियमित रूप से बी.पी. चैकअप, स्मोकिंग-अल्कोहल से दूरी, पौष्टिक आहार, एक्सरसाइज, मॉर्निंग वॉक जरूरी है। अनिद्रा की समस्या, फैमिली हिस्ट्री हो तो रुटीन चैकअप कराएं। तनाव, गुस्सा पैदा करने वाली स्थितियों से बचे।